IVF Process in Hindi | समझिये आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण की पूरी प्रकिया?

 इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन में फर्टिलाइजेशन, एंब्रियो का विकास और इम्प्लांटेशन किया जाता है ताकि एक महिला प्रेग्नेंट हो सके।

आईवीएफ को गर्भधारण से जुड़ी समस्या से निजात पाने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है क्योंकि यह सालों से लोगों को सकारात्मक परिणाम दे रहा है। आईवीएफ का सक्सेस रेट काफी अच्छा है और यह सरल भी है। लोग इसके बारे में आज काफी कुछ जानते हैं और यही कारण है कि वह इससे डरते नहीं और ना ही उन्हें इससे संबंधित कोई संदेह होता है। आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण की प्रकिया में स्पर्म को बॉडी से बाहर कल्चर में रखना होता है। लेकिन इसमें आईवीएफ से पहले और बाद में काफी कुछ होता है जिसे हमें अच्छे से जानने की जरूरत है। अब हम विभिन्न चरणों में इसे समझने की कोशिश करेंगे।

आईवीएफ की प्रक्रिया का उपयोग निम्नलिखित के लिए किया जाता है:

  • ओवुलेशन डिसऑर्डर – अगर ओवुलेशन ठीक से नहीं होता है या होता ही नहीं है तो ऐसे में फर्टिलाइजेशन के लिए कम अंडे ही उपलब्ध रहते हैं। 

  • यूटराइन फाइब्रॉयड – फाइब्रॉयड यूट्रस की वॉल पर एक बिनाइन ट्यूमर होता है और 30 से 40 साल की औरतों में आम तौर पर पाया जाता है। फाइब्रॉयड अंडों के फर्टिलाइजेशन के इंप्लांटेशन में दिक्कतें पैदा करता है।

  • अनएक्सप्लेंड इनफर्टिलिटी – ऐसे में इनफर्टिलिटी के पीछे कोई सामान्य कारण नहीं होता है।

  • ब्लॉक फैलोपियन ट्यूब  – फैलोपियन ट्यूब डैमेज जा ब्लॉकेज अंडो के लिए फर्टिलाइजेशन करना मुश्किल बना देता है या एंब्रियो का यूट्रस तक जाना मुश्किल कर देता है।

  • एंडोमेट्रियोसिस – यह तब होता है जब यूटेराइन टिशु यूट्रस के बाहर विकसित होने लगते हैं और जिससे आम तौर पर ओवरी, यूट्रस और फैलोपियन ट्यूब के फंक्शन पर प्रभाव पड़ता है।

  • लो स्पर्म काउंट या ब्लॉकेज के कारण पुरुष बांझपन – स्पर्म जरुरत से कम मात्रा में होना, स्पर्म की धीमी गति  या आकार में कमी, अंडों में स्पर्म के फर्टिलाइजेशन को मुश्किल बना देता है। अगर सीमन में कोई कमी होती है तो आपके पार्टनर को एक्सपर्ट से मिलना होता है ताकि परेशानी से निजात पाया जा सके।

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